अपने एहसासों का एक कारवाँ लिए,
ॠषि कुमार सिंह,
भारतीय जन संचार संस्थान
नई दिल्ली॥
गुरुवार, 28 फ़रवरी 2008
रोने का मज़ा ही अलग है
जब जब मन उदास हो मन भर के रोना चाहिए ]किसी का कन्धा मिले तो ठीकहै लेकिन न मिले तो अकेले ही रोना रोना चाहिए । जब आंसू बाहर निकल जाते है तो मन शांत हो जाता है । रोते रोते सब बात कह डालने का मज़ा शयेद ही अन्य किसी तरीके मे हो। ख़त लिखने मे भी इतना मज़ा नही आता है।
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