शनिवार, 23 फ़रवरी 2008

सच से सामना हो गया

आज मैं एक स्कूल गया जहाँ शायद मुझ जैसो से ज्यादा समझदार बच्चे पढ़ रहे है। कहने का मतलब यह है कि उन्हें तो प्रकृति ने चुनौती दे रखी है ,इन सबके बावजूद वे हमसे कहीं भी पीछे न थे । हमारी तरह सब कुछ जानते थे और अपनी जीवन जीने के तरीके मे हमसे कई गुना होशियार भी। ब्लाइंड होने के बावजूद वे हमसे उसी तरह मुखातिब थे जैसे सामन्य बच्चे । इस स्कूल के टीचर कि मेहनत भी कम न थी ,उन्हें देखकर लगने लगा कि आज कल शायद माँ -बाप भी आपने बच्चे को इतना प्यार नही करते है। खास कर पिज्जा फेमिली वाले तो कतई नही । आज वह भ्रम टूट गया कि ऐसे बच्चे बेह्टर काम नही कर सकते है ,jrurat तो उन्हें थोड़ा alg dhyan देने कि है । ऐसे sansthan की upyogita और ubhr आती है।

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