शुक्रवार, 13 जून 2008

क्यों खुश नही हो सके हम ......

भारतीय जन संचार संस्थान मे दीक्षांत समारोह मे हमारे सभी सहपाठियों का मिलना हुआ...इस बार एक कमी सी दिखी वह थी की हम सभी खुश थे लिकिन पहले जैसे नही ....आखिर क्या चाहिए था हम लोगों को खुश होने के लिए ...ये तो अपनी chahton का pridam हो skta है......दो तीन साथियों को छोर कर सभी के पास कमो बेश लिकिन जीविका के बेहतर अवसर हैं ....अगर हम पा कर खुश नही थे ....तो ऐसे मे उनकी बात ही क्या करे जो अभी तक संघर्ष कर रहे हैं ....अब दूसरो की खुश होने और न होने के बरे मे कयास लगने से बेह्टर है की आखिर मैं क्यों खुश नही था ....अगर सही कहूँ तो मुझे ये क्न्वोकेशन काफी अधूरा लगा...... कारन साफ था की इससे पहले जब हम सभी साथी मिलते तो छात्र के स्तर पर बराबर थे ....लेकिन इस बार जब मिले तो सभी के साथ संगठन की पहचान थी....जब हम डिग्री पाकर खुशी से गले मिल रहे थे तो हमारे बीच कुछ लोग ऐसे थे जो की हमारी तरह खुश नही थे ....जैसा की मैंने महसूस किया किउनकी मुस्कान पर संघर्ष की अनिश्चितता का डर हावी था...इसी कारन मैं इस समारोह को अधूरा कह रहा... ......खुशी के dhayre से कुछ लोगों का chhutna ही मुझे रास नही आ rha था .....क्योंकि मैं नही चाहता की तक के बराबर चलने wale लोग मुझसे किसी बात मे pichhe राह जायें ....जब हम खुशी से sarabor हों तो उनके दामन मे namin हो ......देखते की kitan km कर सकते हैं उनके संघर्ष की tapis को .......