अपने एहसासों का एक कारवाँ लिए,
ॠषि कुमार सिंह,
भारतीय जन संचार संस्थान
नई दिल्ली॥
सोमवार, 4 फ़रवरी 2008
सवेरे की तलाश मे
आज जाने कैसा महसूस हो रहा है। मन किसी अनजाने बोझ से दबा जा रहा है। जैसे किसी अपराध से जुडे औजार की बरामदगी हो गई हो। सब कुछ जानते हुए भी आज के दिन की तकलीफ से खुद को नहीं बचा पाया।
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