सोमवार, 4 फ़रवरी 2008

सवेरे की तलाश मे

आज जाने कैसा महसूस हो रहा है। मन किसी अनजाने बोझ से दबा जा रहा है। जैसे किसी अपराध से जुडे औजार की बरामदगी हो गई हो। सब कुछ जानते हुए भी आज के दिन की तकलीफ से खुद को नहीं बचा पाया।

कोई टिप्पणी नहीं: