शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2008

लोग सच बोलने से क्यों डरते है

आज बहुत दिन बाद ये लगने लगा है की अब सच बोलना भी गुनाह हो सकता है। लोग बात को बे बात कर देते जब उन्हें लगता है कि ये आदमी सच बोलने लगा है।पुरानी बातों और सिधान्तो कि जगह नये नियम गढ़ने लगता है । यानि एक आदमी मानता है कि जितना हम बतायेंगे यह उससे आगे नही सोचेगा । जब कि सोचने कि प्रक्रिया किसी कि गुलाम नही है । अब गोली मार भेजे मे बात दिमाग मे नही आये इसके लिए जरूरी है कि आपने तर्कों को और मांजा जाए । इतना पुख्ता बनाया जाए कि नियम देने वाले भी उसको मने भले ही न लेकन सोचने के लिए मजबूर जरुर हो जाए।

कोई टिप्पणी नहीं: